Saturday, December 25, 2010

---कहीं मिलोगे तुम---

मन में मेरे एक आशा थी
कहीं मिलोगे तुम
जीवन की सूनी राहों में
साथी होगे तुम
तुम को खोज रहा था हर पल
मेरे मन का कोना
चाह रहीं थी मेरी साँसे
तेरी साँसे होना
मेरे मन के मोती के
सीप बनोगे तुम
जीवन के इस अन्धकार में
दीप बनोगे तुम
वर्षों तक जीवन बीता है
तेरी आस संजोये.
सूख गए थे आंसू अपने
बिन आँखों के रोये
फिर भी था विश्वास मुझे
कहीं दिखोगे तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी होगे तुम
जीवन में वह मोड़ भी आया
दिल का चाहा सब कुछ पाया
संवेदन सब मचल उठे थे
अधरों ने यौवन छलकाया
इक मोड़ पर मेरे इंतज़ार में
खड़े दिखे थे तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी बने थे तुम
मैंने तुमसे वह कह डाला
मन में मेरे जो बात उठी
वो वादे किये,वो कसमें ली
जो उन बातों के साथ उठी
फिर मौन स्वीकृति दे
साथ चले थे तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी बने थे तुम
फिर ऐसा विकट समय भी आया
मेरा वन फिर से हाय मुरझाया
दो-चार कदम हम साथ चले
वो साथ नहीं था थी छाया
मैंने तुको बादल समझा
पर बिजली निकले तुम
जीवन कि अँधेरी राहों में
मुझे छोड़ चले हो तुम
भ्रम तुमको है या हमको
मैं नहीं जानता हूँ
अब तो केवल
अपने फर्जों को मानता हूँ
एक प्रणय तुम्हारा ही तो नहीं
जीवन में कुछ फ़र्ज़ और भी हैं
एक तुम्ही नहीं सपना मेरा
मुझ पर कुछ क़र्ज़ और भी हैं
कल दुनियाँ मेरी होगी
मैं मंजिल अपनी पाऊंगा
नहीं कमी होगी कुछ भी
दुनियाँ में जाना जाऊंगा
फिर भी अफशोस यही होगा
कि साथ नहीं हो तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी बने थे तुम
                             ---आनंद सावरण ---

1 comment:

shivam nagesh singh said...

veer ras ka kavi ab aashiq ho gaya ho gaya hai...