Friday, November 28, 2014

----------"क्रांति-गीत" ----------

साथी!!
आओ क्रांति करते हैं
विरोधी गीत गाते हैं
युवाओं को तलासने दो अपना अस्तित्व
इश्किया इक्षाओं में 
सर पे खड़ी मौत को नाम लिखाने दो
अहिंसा के रजिस्टर में
पुरुषार्थ को होने दो परिभाषित
तितलियों को मसलने में
कवि को रचने दो क्रांति गीत
वातानुकूलित कमरे में
साथी!!
आओ क्रांति करते हैं
विरोधी गीत गाते हैं 
---- आनंद सावरण ---

Friday, October 17, 2014

-----जब से स्वप्नों में तुम आने लगी-----







जब से स्वप्नों में तुम आने लगी
कल्पना भी तभी अर्थ पाने लगी
शब्द शब्द हैं मुखर मौन है व्याकरण
लेखनी भी तुम्हे गुनगुनाने लगी 

तुम जो आये तो हर्षित हुयी ज़िदगी
प्रीती भी तुम पे हुयी मोहित ज़िंदगी
भर अश्रु अंतस भटक रहे थे कभी
नेह लाये आप्यायित हुयी ज़िन्दगी
~~~~~आनंद सावरण ~~~~~

Wednesday, October 1, 2014

-----------------------------बापू हमें तुम्हारी याद आती है---------------


गांधी

हमें तुम्हारी याद आती है
बापू
हमें तुम्हारी याद आती है
जब-जब
समाज का होता है
नैतिक पतन
किसी के कुकृत्य के कारन 
कोई ओढ़ता है कफ़न 
गांधी!
तुम्हारी याद आती है
बापू तुम्हारी याद आती है
जब-जब
अपनी माँ के प्रसाद का 
अहर्निश रक्षक 
सर अर्पित कर लौटता है घर
तब-तब
गांधी
तुम्हारी याद आती है
जब-जब
कोई
छुद्र राजनितिक लाभ के लिए
तदर्थ रूप से 
ओढ़ बैठता है
तुम्हारे दर्शन वाली चादर
और
होता है गांधीवाद असफल
तब बापू
तुम्हारी बहुत याद आती है
गांधी तुम्हारी याद आती है
बाबा!
एक बार फिर से आओ न
हमको फिर से 
आत्मबल,सत्य,अहिंसा,संयम
वाला
भूला पाठ पढ़ाओ न!!!

------आनन्द सावरण -----

Sunday, September 28, 2014

-----------------------क्रांति-कुल-कलियुग-कन्हैया "भगत सिंह" ---------------





ओ! युवता के 
प्रकाशस्तंभ
भगत!!

सड़क पर सोया हुआ
आदमी बुरा लगता है

ब्रांडो के पीछे भागता
युवा बुरा लगता है
रखैल से रतिरत
अधेड़ बुरा लगता है
पतले रिक्शेवाले के रिक्शे पे
बैठा मोटा बुरा लगता है



ओ!मृत्युविजेता
भगत!!


तथाकथित शाइनिंग इंडिया

अच्छे दिन,भारत निर्माण
अब बहुत बुरा लगता है
एकांगी व्यवस्था के
नियोजन से
विदर्भ,नंदीग्राम
में मरता हुआ किसान
बुरा लगता है
किसी कंपनी के प्रचार में
दांत चीयारे नायक बुरा लगता है



ओ!उच्च चेतना
भगत!!



फिर आ जाओ
करो एक धमाका फिर से
बहरों को सुनाने के लिए
बतलाने कर लिए
संवृद्धि और विकास में अंतर होता है
चेताने के लिए
संवृद्धि के बने द्वीप और
असह्य भूख से पेट पर कपडा बांधे
व्यक्ति में अंतर होता है !!!!!!



.....आनंद सावरण.....

Saturday, February 15, 2014

-------तुम हो गयी हो अब कलंकित------


                       
तुम
हो गयी हो कलंकित
यूँ अकारण अब
विलाप नहीं सुहाता 
तुम पर
तुम जाती थी
उससे मिलने,बतियाने
ऐसा क्या कह आती थी
जो मैं गा उठता था



खैर!
मेरी छोडो
अपनी समझो
सुना था तुम
क्रांति लाती हो
क्या वहां भी
कर लिया स्वत्व का सौदा


अरे कविता!!
तुम तो भावना की बहन हो
आदर्श की बेटी हो
परिस्थितियां तुमने बदली
अब ये अधोपतन


खैर!!
इसे भी छोडो
सुना था तुम
व्याकरण की
परिधि में नहीं रहती
वैयाकरणों ने
वहां भी की कोशिश
तुम्हे बांधने की
तुम भी चढ़ाई गयी
खरे और खोटे की
कसौटी पर
छीनी गयी तुम्हारी
स्वतन्त्रता


खैर!!
तुमसे इतनी उम्मीद क्यूँ??
नारी हो न
द्वापर में
कृष्णा के रहते
होगा ही चीर हरण
त्रेता में
राम ही लेंगे
तुम्हारी अग्नि परीक्षा
और कलियुग में
तुम्हारे ही रक्षक
बिकाऊ कलमची
बचा न पाएंगे
तुम्हारी अस्मिता


होगा खिलवाड़
तुम्हारे ही अंतर से
कब से रो रही हो
अब तो मौन साधो
अपनी उस
परम्परा के लिए
जिसमे कबीरा,तुलसी
और मीरा थे!!!
---आनन्द सावरण ----