Friday, October 17, 2014

-----जब से स्वप्नों में तुम आने लगी-----







जब से स्वप्नों में तुम आने लगी
कल्पना भी तभी अर्थ पाने लगी
शब्द शब्द हैं मुखर मौन है व्याकरण
लेखनी भी तुम्हे गुनगुनाने लगी 

तुम जो आये तो हर्षित हुयी ज़िदगी
प्रीती भी तुम पे हुयी मोहित ज़िंदगी
भर अश्रु अंतस भटक रहे थे कभी
नेह लाये आप्यायित हुयी ज़िन्दगी
~~~~~आनंद सावरण ~~~~~

Wednesday, October 1, 2014

-----------------------------बापू हमें तुम्हारी याद आती है---------------


गांधी

हमें तुम्हारी याद आती है
बापू
हमें तुम्हारी याद आती है
जब-जब
समाज का होता है
नैतिक पतन
किसी के कुकृत्य के कारन 
कोई ओढ़ता है कफ़न 
गांधी!
तुम्हारी याद आती है
बापू तुम्हारी याद आती है
जब-जब
अपनी माँ के प्रसाद का 
अहर्निश रक्षक 
सर अर्पित कर लौटता है घर
तब-तब
गांधी
तुम्हारी याद आती है
जब-जब
कोई
छुद्र राजनितिक लाभ के लिए
तदर्थ रूप से 
ओढ़ बैठता है
तुम्हारे दर्शन वाली चादर
और
होता है गांधीवाद असफल
तब बापू
तुम्हारी बहुत याद आती है
गांधी तुम्हारी याद आती है
बाबा!
एक बार फिर से आओ न
हमको फिर से 
आत्मबल,सत्य,अहिंसा,संयम
वाला
भूला पाठ पढ़ाओ न!!!

------आनन्द सावरण -----