Saturday, October 16, 2010

---------" लो फिर से आ गया दशहरा''-------

तन में कुछ हलचल होती है,
मन में छाया ख्वाब सुनहरा,
खुशहाली फैलेगी चहुदिश ,
लो फिर से आ गया दशहरा||
रावण राम युद्ध होगा जब,
हम नैनों से वार करेंगे,
लाज की ढाल लगा लेना तुम,
जब भावों के तीर चलेंगे,
संवेदन मचलेंगे फिर से,
जीवन में होगा उजियारा,
खुशहाली  फैलेगी चहुदिश,
लो  फिर से आ गया दशाहरा||
प्यासा मन फिर तृप्त बनेगा,
स्वाती पीयूष  पुनः टपकेगा
पपीहा सा मैं निरखूँगा फिर,
बरसों बाद चाँद निकलेगा, 
निरख तुम्हारे कंचन मुख को ,
पाऊँगा उत्साह दुबारा,
खुशहाली फैलेगी चहुदिश,
लो फिर से आ गया दशहरा||
शब्द नहीं अब बीच हमारे,
संवेदन ही बने सहारे,
कुछ तेरी मजबूरी होगी,
या होंगे कुछ फ़र्ज़ हमारे,
इंतज़ार तुम मेरा करना ,
सच होने तक सुन्दर सपना,
जिस पर है विशवास हमारा,
लो फिर से आ गया दशहरा ||
                                -----आनंद सावरण----

(मम्मा)

मैं नहीं जानता हूँ माता,
मैं ऋणी तुम्हारा हूँ कितना?
तेरी सेवा में जीवन दूं ,
अब तो है बस एक ही सपना|
तेरे कारण अस्तित्ववान हूँ ,
तूने मुझे जना है,
मुझको आँचल की छाया  दे,
तूने धुप चुना है|
सूखे में तू मुझे सुलाती,
गीले में खुद सोई,
मुझको अपना दुग्ध पिलाया,
खुद भूखे पेट ही सोई|
खड़ा हुआ चलने को ,
तो तूने ऊँगली थामा,
चलते चलते गिर जाता, 
तो याद तेरा पछताना|
जब मुझको ठोकर लगती,
तब आह निकलती तेरे,
जब भी मैं रोया करता 
तो आंसू आते तेरे|
बिन खाए जब सो जाता,
तब भी तू मुझे जगती थी,
मुझे बिठा कर गोदी में ,
खुद अपने हाँथ  खिलाती थी|
मुझे याद अब भी माते,
सुबह तेरे हरि नाम का जपना,
तेरी सेवा में जीवन दूं ,
अब तो है बस एक ही सपना||
                                ---------आनंद सावरण  --------
                                            

Thursday, October 14, 2010

राम ही है हर मन में,राम ही हैं रावण में

राम और रावण गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित  रामचरितमानस के दो पात्र ही नहीं अपितु बुराई  व अच्छाई के प्रतीक हैं|
एक तरफ राम हैं जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है ,दूसरी तरफ रावण जिसे अहंकारी,दुष्ट कहा गया है|राम जो अच्छाई के प्रतीक हैं,जिनका वास हर मन में है तो रावण कोई अपवाद तो नहीं|जब राम का निवास हर में है तो रावण को राक्षस स्वरुप क्यों माना गया? रावण के मन  में निश्चित रूप से राम का वास होना चाहिए|अब प्रश्न उठता है कि जब राम(अर्थात अच्छाई के प्रतीक )का निवास रावण के मन में है तो रावण को राक्षस स्वरूप क्यों माना गया?
रावण भी तो एक ऋषि था,एक प्रकांड विद्वान् था|रावण भी राम कि ही भांति सहस्र विद्या से युक्त था|यदि किसी व्यक्ति की एक गलती से वह राक्षस स्वरुप हो सकता है.तब तो आज गली-गली में एक रावण मिल सकता है|रावण का राक्षसी रूप दशानन है,तब तो आज के समाज में रावण से भी कई गुना शक्तिशाली दशानन उपस्थित हैं और आज इन रावणों को मारने के लिया राम से भी कई गुना शक्तिशाली राम चाहिए|
गो० तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में बुराई पर अच्छाई को विजय प्राप्त कराई है|रावण को अहंकार तथा राम को विनय का रूप स्वीकार किया गया है|भक्त कवि कबीर ने भी विनय का सम्मान करते हुए तथा अहंकार का तिरस्कार करते हुए कहा है.
"जब मैं था तब हरि नहीं,अब हरि हैं मैं नाही|
सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहि||
रामचरितमानस के रावण में  भी सीता का अपहरण करते समय "मैं" अर्थात अहंकार का भाव उत्पन्न हो गया होगा,तभी उस समय की राम की अनुपस्थिति आज रावण के राक्षस स्वरूप में जानी जाती है| रावण जब तक ऋषि था तब तक राम की उपस्थति उसके ह्रदय में थी परन्तु राम की एक क्षण की अनुपस्थिति ही आज रावण को राक्षस के रूप में पहचान दिलाती है|चाहे वह रामचरितमानस का रावण हो या वह रावण आज के समाज का हो राम की एक क्षण की अनुपस्थिति या मन में एक क्षण  के लिए भी "मैं" का भाव उत्पन्न होने पर हस्र वही होता है जो रामचरितमानस में रावण का हुआ है अर्थात बुराई पर अच्छाई की विजय अवश्य होती है||

||आप सभी को विजयदशमी की  हार्दिक शुभकामनाएं ||

--------चलता जा तू---------

चलता जा तू अपने पथ पर लिया विचारों की ज्वाला
मार्ग कठिन हो भले तुम्हारा तुमसा ना चलने वाला
तू मनु का पूत सपूत तो क्यों सोच रहा है मतवाला
ठोकर बन जायेंगे मील के पत्थर यदि तू है चलने वाला
तू सोच रहा क्यों अर्जुन सा हे  समर भूमि में मतवाला
क्या फिर गांडीव में जंग लगी या टूट गया रथ की माला
क्या कृष्ण  तुम्हारा  बिछड़  गया या,भटक गए तुम पथ अपना ??
क्या तुम में पाने की शक्ति नहीं जिसका देखा तुमने सपना
तुम में है वो शक्ति भरी तुम टकरा सकते हो तूफानों से
करो भागीरथी प्रयत्न अगर गन्गा आ सकती मैदानों में..
तुम कालकवलित हो जाओ पर लक्ष्य ना तुम अपना छोड़ो
अपने मन के घोड़ों को ले कर्मभूमि में दौड़ो
                                                   -----आनंद सावरण -----