राम और रावण गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के दो पात्र ही नहीं अपितु बुराई व अच्छाई के प्रतीक हैं|
एक तरफ राम हैं जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है ,दूसरी तरफ रावण जिसे अहंकारी,दुष्ट कहा गया है|राम जो अच्छाई के प्रतीक हैं,जिनका वास हर मन में है तो रावण कोई अपवाद तो नहीं|जब राम का निवास हर में है तो रावण को राक्षस स्वरुप क्यों माना गया? रावण के मन में निश्चित रूप से राम का वास होना चाहिए|अब प्रश्न उठता है कि जब राम(अर्थात अच्छाई के प्रतीक )का निवास रावण के मन में है तो रावण को राक्षस स्वरूप क्यों माना गया?
रावण भी तो एक ऋषि था,एक प्रकांड विद्वान् था|रावण भी राम कि ही भांति सहस्र विद्या से युक्त था|यदि किसी व्यक्ति की एक गलती से वह राक्षस स्वरुप हो सकता है.तब तो आज गली-गली में एक रावण मिल सकता है|रावण का राक्षसी रूप दशानन है,तब तो आज के समाज में रावण से भी कई गुना शक्तिशाली दशानन उपस्थित हैं और आज इन रावणों को मारने के लिया राम से भी कई गुना शक्तिशाली राम चाहिए|
गो० तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में बुराई पर अच्छाई को विजय प्राप्त कराई है|रावण को अहंकार तथा राम को विनय का रूप स्वीकार किया गया है|भक्त कवि कबीर ने भी विनय का सम्मान करते हुए तथा अहंकार का तिरस्कार करते हुए कहा है.
"जब मैं था तब हरि नहीं,अब हरि हैं मैं नाही|
सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहि||
रामचरितमानस के रावण में भी सीता का अपहरण करते समय "मैं" अर्थात अहंकार का भाव उत्पन्न हो गया होगा,तभी उस समय की राम की अनुपस्थिति आज रावण के राक्षस स्वरूप में जानी जाती है| रावण जब तक ऋषि था तब तक राम की उपस्थति उसके ह्रदय में थी परन्तु राम की एक क्षण की अनुपस्थिति ही आज रावण को राक्षस के रूप में पहचान दिलाती है|चाहे वह रामचरितमानस का रावण हो या वह रावण आज के समाज का हो राम की एक क्षण की अनुपस्थिति या मन में एक क्षण के लिए भी "मैं" का भाव उत्पन्न होने पर हस्र वही होता है जो रामचरितमानस में रावण का हुआ है अर्थात बुराई पर अच्छाई की विजय अवश्य होती है||
||आप सभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ||