Tuesday, December 28, 2010

------------ संघर्ष -----------




एक छोटा बच्चा
आँखों में मायूसी,
सीने में दर्द,
अधरों पर 
मुस्कान संजोये
दिखाता है
कुछ कलाबाजियां
सड़क के किनारे 
महज़ चन्द सिक्कों कि खातिर
क्योंकि
सिक्कों कि चमक में 
वह देखता है
अपना धुंधला भविष्य
भोजन, वस्त्र और एक स्थायी जीवन
लोग देखते हैं
इसकी कलाबाजियाँ
और दबा लेते हैं 
दांतों तले उंगलियाँ
खेल के समापनोपरांत
वह फैलाता है अपनी नन्ही हथेली
लोग चल देते हैं वहाँ से 
वह रह जाता है स्तब्ध
और देखता रह जाता है
रूठकर जाती अपनी किस्मत को
माथे पर पड़ता है बल 
और खिंच जाती हैं कुछ लकीरें
फिर अपना सामान समेटे 
चल देता है अन्यत्र
कालाबाजियाँ दिखाने 
                               ---आनंद सावरण---   



Sunday, December 26, 2010

---कविता और सरिता---

कवि से जन्म लेती है कविता
पर्वत से जन्म लेती है सरिता
सरिता लेती है जन्म
प्यासों को तृप्त बनाने को
फिर सागर में मिल जाने को
कविता लेती है जन्म
भावशून्यों के मन में भाव जगाने को
नीरस हृदयों में घर कर जाने को
सागर से मिलने पर
सरिता बन जाती है बादल
प्यासी धरती को तृप्त कर जाने को
अधरों से मिलने पर
कविता बन जाती है संबल
अकेले में स्वयं को स्वयं से मिलाने को
                                                  ---आनंद सावरण---

---मैं जानता हूँ---


Saturday, December 25, 2010

---कहीं मिलोगे तुम---

मन में मेरे एक आशा थी
कहीं मिलोगे तुम
जीवन की सूनी राहों में
साथी होगे तुम
तुम को खोज रहा था हर पल
मेरे मन का कोना
चाह रहीं थी मेरी साँसे
तेरी साँसे होना
मेरे मन के मोती के
सीप बनोगे तुम
जीवन के इस अन्धकार में
दीप बनोगे तुम
वर्षों तक जीवन बीता है
तेरी आस संजोये.
सूख गए थे आंसू अपने
बिन आँखों के रोये
फिर भी था विश्वास मुझे
कहीं दिखोगे तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी होगे तुम
जीवन में वह मोड़ भी आया
दिल का चाहा सब कुछ पाया
संवेदन सब मचल उठे थे
अधरों ने यौवन छलकाया
इक मोड़ पर मेरे इंतज़ार में
खड़े दिखे थे तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी बने थे तुम
मैंने तुमसे वह कह डाला
मन में मेरे जो बात उठी
वो वादे किये,वो कसमें ली
जो उन बातों के साथ उठी
फिर मौन स्वीकृति दे
साथ चले थे तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी बने थे तुम
फिर ऐसा विकट समय भी आया
मेरा वन फिर से हाय मुरझाया
दो-चार कदम हम साथ चले
वो साथ नहीं था थी छाया
मैंने तुको बादल समझा
पर बिजली निकले तुम
जीवन कि अँधेरी राहों में
मुझे छोड़ चले हो तुम
भ्रम तुमको है या हमको
मैं नहीं जानता हूँ
अब तो केवल
अपने फर्जों को मानता हूँ
एक प्रणय तुम्हारा ही तो नहीं
जीवन में कुछ फ़र्ज़ और भी हैं
एक तुम्ही नहीं सपना मेरा
मुझ पर कुछ क़र्ज़ और भी हैं
कल दुनियाँ मेरी होगी
मैं मंजिल अपनी पाऊंगा
नहीं कमी होगी कुछ भी
दुनियाँ में जाना जाऊंगा
फिर भी अफशोस यही होगा
कि साथ नहीं हो तुम
जीवन कि सूनी राहों में
साथी बने थे तुम
                             ---आनंद सावरण ---
"लिपटा रजाई में मोटे तकिये पर धर कविता की कॉपी
ठंढक से अंकड़ी उँगलियों से कलम पकड़ी 
मैंने इस जीवन की  गली-गली नापी
हाथ कुछ लगा नहीं,
कोई भी भाव जगा नहीं ||"

Friday, December 24, 2010

भारत क्या?

आज सहसा एक प्रश्न मेरे अंतर्मन में आया और वह मेरे तन मन को कुछ सोचने को आंदोलित कर गया| वह प्रश्न था कि भारत है क्या? क्या भारत एक भौगोलिक इकाई मात्र है? या ये एक राजनैतिक परिधि है? या किसी वीर रस के कावि की कल्पना मात्र है?यदि कल भारत का रूप थोडा सा विस्तृत हुआ या फिर कल भारत की सीमा में कुछ संकुचन आया तो क्या तब भी वह भारत ही रहेगा?
        अपने को हम बड़े गर्व से भारतीय कहते हैं, अपने को हम भारत माँ का बेटा बताते हैं|कल जब भारत की परिधि के अन्दर पाकिस्तान और बाग्लादेश आते थे तब क्या वह भारत नहीं था?या उस समय के भारत के निवासी भारतीय नहीं थे?आज जब हम भारत माता का जयघोष करते हैं तो कहीं ना कहीं स्वतः यह प्रश्न मन को कचोटने लगता है की कहीं हम उस सीमा रेखा का तो जयघोष नहीं कर रहे हैं जो भारत और पाकिस्तान की विभाजक रेखा के रूप में जानी जाति है?
काफी विचार करने के बाद लगता है की भारत जैसे वृहद् शब्द को कोई भोगोलिक इकाई परिभाषित नहीं कर सकती है|भारत एक सोचने समझने का तरिका है,यह एक जज्बा है|यह उस साहस का नाम है जो विभाजित होने के बावजूद भी मुस्कुराकर अपना परिचय भारत बताता है|भारत भारतीयों के मन का एक भाव है|यहाँ के नागरिकों की आपसी समझदारी का नाम भारत है जहां पर कई धर्म, कई पंथ,कई जाति,कई प्रदेश के लोग एक साथ प्यार से रहते हैं और पूछे जाने पर हर कोई अपने को गर्व से भारतीय बताता है |भारत उस सहस का नाम है जो कई दंश अपने दिल पर सहने के बावजूद प्रगति पथ पर अग्रसर है|
इसी जज्बे को सलाम करते हुए कवि इकबाल नें लिखा था-
"यूनान,मिस्र,रोमा सब मिट गए जहां से,
अभी तक है बाकी नामों निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा||"
                                                                                                                                                   ---आनंद सावरण---

Tuesday, December 21, 2010

------------कश्मीर ------------

भारत के उत्तर में स्थित
दिखती जो तस्वीर है
धवल हिमालय से आच्छादित
वह अपना कश्मीर है
ऋषियों मुनियों का स्थल है
स्वर्ग से भी यह प्यारा है
सेब,गलीचे,रेशम,केसर
का खूब दिखता नज़ारा है
पर आतंकवाद के मंसूबों से
कश्मीर हमारा हाय बदल गया
पत्थरबाजों कि करतूतों से
कश्मीर हमारा हाय दहल गया
केशर कि खुशबू थी जिसमें
कश्मीर हमारा कहाँ गया?
कल्ल्हड़ कि रजतरंगिनी  का
वह वृहद् नजारा कहाँ गया?
हिन्दू-मुस्लिम संबंधों का
वह भाई चारा कहाँ गया?
अब तो हालत ऐसी है
कश्मीर में फैली हिंसा है
गौतम गांधी के देश में अब
दिखती नहीं अहिंसा है
भारत माँ के मस्तक को
पत्थरबाजों ने रौंदा है
कभी आतंकी बंदूकों ने
किया मौत का सौदा है
आतंकवाद के सापों ने
डल झील में विष फैलाया है
जिसको हमने पुचकारा था
उसने ही आग लगाया है
अरुन्धतियों के वाक् तीर भी
जनता को उकसाते हैं
अलगाववाद के नारों का
यह सही रूप ठहराते हैं
कुछ भी हो आतंकवाद की
पौध अब ना उगने पाए
कश्मीर स्वर्ग है पहले से
नर्क अब ना बनाने पाए
सच है यह कश्मीर देश का
मस्तक रुपी हिस्सा है
यह आतंकवाद को झुठलाने की
सबसे बड़ी परीक्षा है
हमने ली है कसम आज
हम प्राणों की आहूति दे देंगे
लेकिन भारत माँ के मस्तक पर
कलंक अब ना लगने देंगे
आओ हम सब एक साथ चलें
यह आज हमारा नारा है
कश्मीर शीर्ष है भारत का
यह हमको प्राणों से भी प्यारा है
                                             ---आनद सावरण---

Saturday, December 18, 2010

---मुहब्बत है अब भी आपको पा जाने के अरमान में---

मुहब्बत के नाम से करते यहां सारे मुहब्बत
क्योंकि नहीं इस दुनियां में इस जैसी इबादत
मुहब्बत को जिसने जिया यहाँ
अमृत छोड़ गरल ही जिसने पिया यहाँ
वह जानता है मुहब्बत में ताकत है ऐसी
नहीं इस धरा में किसी में वैसी
मुहब्बत जो चाहे वह करा सकती है
ज़र्रे को भी पर्वत बना सकती है
मुहाबत नाम की खुशबू जहाँ चाहे वहां फैले
यह साफ़ करती है यहाँ लोगों के मन मैले
सब कहते हैं
मुहब्बत नाम है इसका
मुहब्बत नाम है उसका
जरा धर ध्यान देखो
तो मुहब्बत नाम है किसका
मुहाब्बत है मीरा की भक्ति में
मुहब्बत है दुर्गा की शक्ति में
मुहब्बत है माँ के लयात्मक लोकज्ञान में
मुहब्बत है पिता के भायात्मक अनुशासन में
मुहब्बत है भाई-बहनों की प्यारी तकरार में
मुहब्बत है किसी के साथ रहने के करार में
मुहाब्बत है कृष्ण की बांसुरी की तान में
मुहब्बत है आलिम-फ़ाज़िल के ज्ञान में
मुहब्बत है परमपुरुष राम और हनुमान में
मुहाबत है गीता और क़ुरान में
मुहब्बत है
अब भी आपको पा जाने के अरमान में
मुहब्बत है कवि की कविताओं में
मुहब्बत है भारत की सती और सविताओं में
मुहब्बत शब्द की कोई परिभाषा नहीं
मुहब्बत की होती कोई भाषा नहीं
मुहब्बत में समर्पण भाव होता है
मुहब्बत में बस यही तो चाव होता है
                                           ----आनंद सावरण ---