एक छोटा बच्चा
आँखों में मायूसी,
सीने में दर्द,
अधरों पर
मुस्कान संजोये
दिखाता है
कुछ कलाबाजियां
सड़क के किनारे
महज़ चन्द सिक्कों कि खातिर
क्योंकि
सिक्कों कि चमक में
वह देखता है
अपना धुंधला भविष्य
भोजन, वस्त्र और एक स्थायी जीवन
लोग देखते हैं
इसकी कलाबाजियाँ
और दबा लेते हैं
दांतों तले उंगलियाँ
खेल के समापनोपरांत
वह फैलाता है अपनी नन्ही हथेली
लोग चल देते हैं वहाँ से
वह रह जाता है स्तब्ध
और देखता रह जाता है
रूठकर जाती अपनी किस्मत को
माथे पर पड़ता है बल
और खिंच जाती हैं कुछ लकीरें
फिर अपना सामान समेटे
चल देता है अन्यत्र
कालाबाजियाँ दिखाने
---आनंद सावरण---