तेरे संग हूँ पर जो दूरी है समझता हूँ
कुछ तेरी कुछ अपनी मजबूरी समझता हूँ
समझ कर भी नहीं हूँ मैं कुछ भी मैं यूं समझ पाता
मैं तुझमे खो गया इतना की खुद को पा नहीं पाता
हो तुम मुझसे दूर पर तुमको दूर मैं मान लूं कैसे?
मैं प्राणों को अपनी श्वासों से दूर जान लूं कैसे?
तू ही बता अब इन गीतों को मैं पहचान दूं कैसे?
तेरे ही इन गीतों को मैं अपनी तान दूं कैसे?
---आनंद सावरण---