Tuesday, March 6, 2012

----------मैंने देखा--------------

मैंने देखा
एक भूखा बच्चा
अपने दुर्बल माँ की छाती से लिपटा हुआ
मैंने देखा
एक प्रसिद्द साधू
सोने चांदी की कुर्सी में चिपका हुआ
मैंने देखा
एक बूढा बाप
अपने जवान बेटे की लाश उठाये हुए
मैंने देखा
एक प्रसिद्ध समाज सेवी
फर्जी संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन करवाए हुए
मैंने देखा 
एक धनी व्यक्ति
एक वैश्या पर रूपया लुटाते हुए
मैंने देखा 
एक छोटा बच्चा 
पढने की उम्र में रिक्शा चलाते हुए 
मैंने देखा 
एक धनी बुड्ढा
एक गरीब लड़की से व्याह रचाए हुए
मैंने देखा
एक आदर्श विद्यार्थी 
सिगरेटे के धुएं से छल्ले बनाए हुए  
  ----आनंद सावरण-----

Sunday, February 19, 2012

------अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा एक नहीं शत बार लिखूंगा ----

अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा

नहीं करना अब कोई त्राण
वेदीबलि पर न्यौछावर प्राण 
न अब बाकी प्रमाण आना है 
अब होगा करना प्रयाण 

अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा 

उत्सर्ग करना होगा तोशक
बनना है समाज का पोषक
अब नायक बन सामने आना है
छोड़ना होगा यह पात्र विदूषक 

अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा 

न करना अब कोई द्वेष
उठा है अब युयुत्सा त्वेष
जीतना है,जीत  ही जाना है
जो समर पड़ा था अब तक शेष

अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा 
  
अपरिभाषित भी हुआ परिभाषित 
क्रान्ति हुयी है फिर से पिपासित  
शोर्य पुत्र बन सामने आना है
सदियों का मौन भी होगा सुभाषित

अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा  
----आनंद सावरण---



Sunday, January 22, 2012

पीर पुराण के आगे प्रणय गान की पुस्तक मोटी है

तेरे झूठ को भी सच
मान कर आँखे रोती हैं
सबकी सच बातें भी मेरे
विश्वास के आगे छोटी हैं  
प्रतिभा भी आज चन्द
सिक्कों के आगे छोटी होती है 
देखो आज टूटता जाता दीपक
बुझती जाती ज्योति है 
कुछ  भी हो,कैसा भी हो पर   
पीर पुराण के आगे सदैव ही 
प्रणय गान की पुस्तक मोटी है
                                         ----आनंद सावरण ----