Thursday, March 31, 2011

दो चार पलों का मिला प्रकाश प्रभु से उपहार सखे
न रोको खामोशी के तालों से
भाव किरण का आना जाना 
उर विहाग को उड़ने दो
स्वछन्द विचारों के नभ में
अंतस में चमक रहा जो हीरा
मत रोको उसका बाहर आना 
                                      ---आनंद सावरण---

Tuesday, March 22, 2011

---------कशमकश --------

जिन फूलों को खिलना न था 
कैसा शिकवा उनके मुरझाने पर
जो रिश्ते कभी अपने ही न थे
कैसा शिकवा उनके टूट जाने पर
वक़्त की आंधी ने पर कतरे हों जिस तितली के
कैसी शिकायत उसके न उड़ने पर
जो वस्तु थी हमसे अधिकारातीत 
कैसा गिला उसके खो जाने पर
जिस ख़ुशी पर मेरा नाम लिखा न हो प्रभु ने
कैसा गिला उसके न मिलने पर                                             
                                          ---आनंद सावरण---