मैं ऋणी तुम्हारा हूँ कितना?
तेरी सेवा में जीवन दूं ,
अब तो है बस एक ही सपना|
तेरे कारण अस्तित्ववान हूँ ,
तूने मुझे जना है,
मुझको आँचल की छाया दे,
तूने धुप चुना है|
सूखे में तू मुझे सुलाती,
गीले में खुद सोई,
मुझको अपना दुग्ध पिलाया,
खुद भूखे पेट ही सोई|
खड़ा हुआ चलने को ,
तो तूने ऊँगली थामा,
चलते चलते गिर जाता,
तो याद तेरा पछताना|
जब मुझको ठोकर लगती,
तब आह निकलती तेरे,
जब भी मैं रोया करता
तो आंसू आते तेरे|
बिन खाए जब सो जाता,
तब भी तू मुझे जगती थी,
मुझे बिठा कर गोदी में ,
खुद अपने हाँथ खिलाती थी|
मुझे याद अब भी माते,
सुबह तेरे हरि नाम का जपना,
तेरी सेवा में जीवन दूं ,
अब तो है बस एक ही सपना||
---------आनंद सावरण --------
---------आनंद सावरण --------
6 comments:
achi hae re...tmne likhi?/
kaise??/
aunty ko padaeee??/
bhai aapto baba anand dev nikle.....sari kavitae utkrusth hai....aise hi aur likhiye....man sukh prapti mein lin hota hai...
aj ke logo ke liye......
माँ के ऋण को हम कभी चुका नहीं सकते लेकिन उसके ऋणों का जो सुखद अहसास तुमने कराया वह अविस्मरणनीय है |
शुभ आशीर्वाद !
माँ के ऋण को हम कभी चुका नहीं सकते लेकिन उसके ऋणों का जो सुखद अहसास तुमने कराया वह अविस्मरणनीय है |
शुभ आशीर्वाद !
bahut achi hai.its ==================amazing wel done
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