जिन फूलों को खिलना न था
कैसा शिकवा उनके मुरझाने पर
जो रिश्ते कभी अपने ही न थे
कैसा शिकवा उनके टूट जाने पर
वक़्त की आंधी ने पर कतरे हों जिस तितली के
कैसी शिकायत उसके न उड़ने पर
जो वस्तु थी हमसे अधिकारातीत
कैसा गिला उसके खो जाने पर
जिस ख़ुशी पर मेरा नाम लिखा न हो प्रभु ने
कैसा गिला उसके न मिलने पर
---आनंद सावरण---
3 comments:
kya baat hai bhai.........
bahut khoob...bahut khoob.........
kya baat hai bhai.......
bahut khoob//////////
जो नहीं तेरा वो मिला नहीं
जो मिल गया उस पर गिला नहीं
सब क्यूं पाने को आतुर है
बस वही पुष्प जो खिला नहीं .
ढेरो शुभकामनाओ सहित .....
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