Friday, February 25, 2011

---------क्या लिखूं?--------

क्या लिखूं?
रस अलंकार जोड़कर 
या काव्यधारा छोड़कर
हुआ आज मैं असहाय
नहीं सूझ रहा कोई उपाय
शब्द नहीं रहे हैं सध
कलम गयी ही बंध
सोचता हूँ मैं पड़ा
कहाँ खो गयी मेरी प्रेरणा
लिखने का करता हूँ प्रयास
पर शब्द नहीं अब मेरे पास
जग रहा नहीं कोई भाव है
ज़िन्दगी तैरती जाती
जैसे बिन पानी के नाव है....
                                  ---आनंद सावरण---

1 comment:

Anonymous said...

कविता का मूलभाव वास्तव में प्रशंसनीय है
प्रस्तुतीकरण के स्तर पर थोडा सुधर शेष है