अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा
नहीं करना अब कोई त्राण
वेदीबलि पर न्यौछावर प्राण
न अब बाकी प्रमाण आना है
अब होगा करना प्रयाण
अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा
उत्सर्ग करना होगा तोशक
बनना है समाज का पोषक
अब नायक बन सामने आना है
छोड़ना होगा यह पात्र विदूषक
अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा
न करना अब कोई द्वेष
उठा है अब युयुत्सा त्वेष
जीतना है,जीत ही जाना है
जो समर पड़ा था अब तक शेष
अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा
अपरिभाषित भी हुआ परिभाषित
क्रान्ति हुयी है फिर से पिपासित
शोर्य पुत्र बन सामने आना है
सदियों का मौन भी होगा सुभाषित
अब श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा
एक नहीं शत बार लिखूंगा
----आनंद सावरण---
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