अनुभूति की अभिव्यक्ति
Thursday, March 31, 2011
दो चार पलों का मिला प्रकाश प्रभु से उपहार सखे
न रोको खामोशी के तालों से
भाव किरण का आना जाना
उर विहाग को उड़ने दो
स्वछन्द विचारों के नभ में
अंतस में चमक रहा जो हीरा
मत रोको उसका बाहर आना
---आनंद सावरण---
1 comment:
Anonymous said...
कुछ बाकी है , कुछ खाली है
जीवन की कविता उमड़ घुमड़
लिखे जाने को मतवाली है .
April 22, 2011 at 10:08 PM
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कुछ बाकी है , कुछ खाली है
जीवन की कविता उमड़ घुमड़
लिखे जाने को मतवाली है .
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