मष्तिष्क कि अंतस गहराइयों में
जीवन कि मजबूत अर्गलाओं से
बंधे सहमे कुछ अनुत्तरित प्रश्न
आंदोलित कर देते हैं अंतर्मन को
और लगा देते हैं प्रश्चिन्ह सामाजिक व्यवस्था पर
आखिर क्यों?
दुनियाँ को रोटी देने वाला किसान
सोता है भूखे पेट खलिहानों में
बड़ी-बड़ी इमारतों का सृजनकर्ता
मजदूर रहता है फूश के झोपड़ों में
आखिर क्यों?
मजदूर के खून कि कीमत
कम आंकी जाती है मोटे सेठ के पसीने से
आखिर क्यों?
धन को माया और ईश्वर को सर्वरक्षक बताने वाले
आधुनिक संत करते हैं धन का महा सृजन
और देते रहते हैं प्रवचन
सुरक्षा गार्डों कि अनिवार्य मौजूदगी में
आखिर क्यों?
धनी व्यक्ति को हो जाता है माधुमेय
सब कुछ होते हुए भी वह पीता है सिर्फ करेले का कड़वा जूस
और एक जो है गरीब
सोता है भूखे पेट
सड़क के किनारे
---आनंद सावरण ---
1 comment:
really an extraordinary piece of work. sensitivity and presentation both are up to mark. keep it up.
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