Sunday, January 16, 2011

---अपनी पहचान एक विन्दु के रूप में---

समष्टि महान है.गुरु है,गंभीर है|किन्तु समष्टि का आधार क्या है?प्रत्येक प्रतिपाद्य का एक आद्य होता है|उसी तरह समष्टि का व्यष्टि है|सिन्धु का आधार विन्दु है|प्रत्येक समष्टि व्यष्टियों के समूह से बनती है|सिन्धु का मूल आधार विन्दु है|विन्दु सिन्धु में अपनी पहचान ,अस्तित्व खो देता है,किन्तु यह विलयन,अस्तित्व का समर्पण अपने को खो देना,बिंदु को सिन्धु में गँवा देना ,एक बड़ी सत्ता के लिए,आत्मसमर्पण,यह भाव कितना उद्दात है|उदग्र रूप से अपने को विलीन कर देना,अपनी संपूर्ण विशेषताओं को एक बड़े समुदाय में मिला देना महानता की,बड़प्पन की पराकाष्ठा है|
विन्दु का अपने आप में क्या महत्व है,यह सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरीकों से महत्त्वपूर्ण है|स्वाति की एक विन्दु जो बादलों से गिरती है रेगिस्तान में विलीन हो जाती है |वनस्पति पर गिरकर मोती सी चमक देती है|यदि इसे कोई विषधर पान कर ले तो वह विष बिंदु बन जाती है|यही बिंदु यदि खुली खुली हुयी सीपी में पड़ जाए तो मोती बन जाती है|जीवन का विन्दु अनमोल है |यदि यह सीपी में पड़ जाए तो मोती बन जाता है,यह विषधर पान कर ले तो विष बिंदु बन जाता है|प्रत्येक बिंदु स्वयं व्यष्टि रूप में है|उसकी सकारात्मक क्षमता ,अपने परिपूर्ण रूप में किसी भी समुदाय में खो देने से बड़ी हैं|स्वयं को प्रत्येक स्थल पर अपनी पहचान स्पष्ट करते हुए अपने विचारों,सोच,व्यक्तित्व,कार्यक्षमता ,कर्मठता ,एवं कृतित्व से संपूर्ण समाज एवं मानवता को आप्यायित करते हुए वक्तित्व का निदर्शन ही सिन्धुवत है|
                                                                  ------आनंद सावरण -------

1 comment:

Anonymous said...

अभी तक लिखी गयी सारी रचनाओं में श्रेष्ठतम !
आचार्य चतुरसेन ने जब 'वैशाली की नगरवधू ' लिखी तो उन्होंने लिखा-"अभी तक लिखी गयी अपनी संपूर्ण साहित्य सम्पदा को प्रसन्नता से रद्द करते हुए मै इसे अपनी प्रथम कृति घोषित करता हूँ' इस तरह से मैं कह सकता हूँ की ये तुम्हारी 'वैशाली की नगरवधू' है
rating-
संवेदना- *****
शैली- *****
प्रस्तुतीकरण- *****
ग्राह्यता- *****
शब्द संयोजन-*****