एक परिंदा अभी उड़ान में है
और तीर हर शख्स की कमान में है
उस पर गजब यह कि बागी
अभी भी बगावत के गुमान में है
देख कर दुनियां की तकलीफें
ऐ तथागत दिल छोटा मत कर
इंसानियत अभी भी जहान में है
पैरों में है फटी जूतियां,जेब खाली
तो क्या? मियां, शायर के ख्याल
अभी तलक आसमान में हैं
महबूबा हो चली है रकीब के संग
अभी भी इनकी जवानी अटकी
इश्क़ के ही इम्तेहान में है ...
-----आनंद सावरण -///
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