Friday, October 17, 2014

-----जब से स्वप्नों में तुम आने लगी-----







जब से स्वप्नों में तुम आने लगी
कल्पना भी तभी अर्थ पाने लगी
शब्द शब्द हैं मुखर मौन है व्याकरण
लेखनी भी तुम्हे गुनगुनाने लगी 

तुम जो आये तो हर्षित हुयी ज़िदगी
प्रीती भी तुम पे हुयी मोहित ज़िंदगी
भर अश्रु अंतस भटक रहे थे कभी
नेह लाये आप्यायित हुयी ज़िन्दगी
~~~~~आनंद सावरण ~~~~~

1 comment:

Rahul said...

kalpanao ko yuhi udan bharne do
apni kavitao se yuhi maan praashan karte raho