Sunday, May 22, 2011

-----नारी सशक्तिकरण----

नारी!तुम केवल श्रद्धा हो,विश्वास रजत नग पग तल में 
पीयूष श्रोत ही बहा करो;जीवन के सुन्दर समतल में

उपर्युक्त पंक्तियाँ प्रसाद (जय शंकर प्रसाद)जी ने लिखी नहीं अपितु यह वाक्षणयमान है कि नारियों के प्रसादपर्यंत यह पंक्तियाँ उनकी लेखनी से नारी को परिभाषित करने के लिए स्वतः फूट पड़ी हैं|
नारी, त्याग,प्रेम,बलिदान,ममता,समर्पण,वफ़ा आदि भाव आत्मसात किये हुए है उसे एक शब्द में श्रद्धा कह देना ही उचित है |आज हमारे  परिवारों की धुरी भी नारी ही है|हमारे घर के पर्यावरण,सारे सामाजिक सरोकारों के पीछे भी नारी शक्ति ही विद्यमान है|नारी ही ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है |
आज से नहीं बल्कि हम ऋग्वैदिक काल को भी देखेंगे तो पायेंगे की मैत्रेयी,पुष्पा जैसी भी नारियां हमारे समाज में थीं जो अपने ज्ञान के बलबूते पर सद्भाव और वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती थी|
नारियों को हमारे समाज में पहले से ही अच्छी स्थिति प्राप्त है|भारत में तो पहले से ही "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ,रमयंते तत्र देव " अर्थात जहां नारी  कि आराधना होती है वहाँ देवताओं का निवास होता है,को मान्यता प्राप्त है|
आज की नारी अबला नहीं अपितु सबला है|नारी की सशक्तिकरण के नाम पर उसको आरक्षण या आवश्यकता   से अधिक सुविधायें  देकर उसको कमज़ोर नहीं करना है ,बल्कि उसको और सशक्त बनाने के लिए उसके अंतर्मन को जगाना होगा उसको रानी लक्ष्मीबाई,पन्ना धाय,हाडा रानी की याद दिलानी होगी| 
आज हमारे परिवारों में भी मैत्रेयी,पुष्पा,लक्ष्मीबाई विद्यमान हैं,आवश्यकता सिर्फ उनको पहचानने की है|इसी भाव को शब्दों के माध्यम से मुखरता देते हुए किसी कवि ने कहा है-

पूरी ज़मीन साथ दे तो और बात है
हम (पुरुष ) नारियों का साथ दें तो और बात है| 
चल तो लेते हैं लोग एक पाँव  पर 
पर दूसरा साथ दे तो और बात है||  
                                               ---आनंद सावरण ---