कौन है मेरी मंजिल?
कौन है मेरा साहिल?
कहाँ हैं मेरी राहें .
सुनता नहीं क्यों
कोई मेरी आहें
घिरा हूँ आज मैं ख़्वाबों के बादल से
ढाका हूँ आज मैं माँ के प्यार भरे आँचल से
है चाहत इस बात की बनाऊं अपना मुकाम कहीं
पर डर है इस बात का की खो न जाऊं मैं कहीं
न जाने ये दुनिया है कैसी
मिलता नहीं कोई भी हितैषी
कहने को तो अपने सब हैं यहाँ
पर खोजने पर कोई मिलता है कहाँ
न जाने ये रिश्ते हैं प्यार के
या सब हैं जुड़े
अपने मतलब के व्यापार से
खड़ा हुआ सोचता हूँ मैं अवाक
क्यों होता दुनिया में संबंधों का मज़ाक
सारे सम्बब्ध मतलब के आगे फीके हैं
सब हैं अपने आप के नहीं किसी और के हैं
हसरत है की मैं आसमान छू जाऊं
पर लौट इसी बचपने में
वापस आ जाऊं
और इस दुनिया को
मैं ये सिखलाऊँ
सम्बन्ध बनता है प्यार से
नहीं बनता ये
दिखावे और व्यापार से
तब ना सोचेगा कोई खड़ा अकेला
जब लगेगा इस दूनियाँ में
संबंधों का प्यारा से मेला
कि कौन हूँ मैं?
कौन है मेरी मंजिल?
कौन है मेरा साहिल?
सबको पता होगा तब
कौन है वह
कौन है उसकी मंजिल
कौन है उसका साहिल
---आनंद सावरण
2 comments:
sahi baat
aaj aavyashakta hai..khud ko pahchanne ki...
bilkul sahi hai boss ...aaj jha aadmi khud ki pahchan kho rha hai .....apne apko bhul kar dusro jaisa bnna chahta hai .....ye padhkar vo jarur apne aapme badlav layega
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